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दारिद्र-दहन प्रयोग
ये शिव जी का स्वर्णाकर्षण भैरव स्वरूप है।कालभैरव के तीन स्वरूपों बटुक भैरव, महाकालभैरव एवम स्वर्णाकर्षण भैरव में स्वर्णाकर्षण भैरव सात्विक स्वरूप है। रुद्रयामल तंत्र में इसका वर्णन है इस का ज्ञान स्वयं महादेव द्वारा नंदी जी और फिर नंदी जी द्वारा लोककल्याण हेतु महर्षि मार्कण्डेय को दिया। स्वर्णाकर्षण भैरव मणिद्वीप के कोषाधिकारी कहे जाते हैं। इस चित्र में वर्णन है कि कैसे वर्षों तक चले देवासुर संग्राम के बाद जब कुबेर और माता लक्ष्मी के कोष में धन का अभाव हो जाता है तो नंदी जी के उपदेश के बाद बद्रीविशाल (विशालातीर्थ) धाम में स्वर्णाकर्षण भैरव को प्रसन्न कर धन प्राप्त करते है।
भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव ने उन्हें दर्शन देकर श्री मणिद्वीप लोक से प्रकट होकर 4 भुजाओ से धन की वर्षा की जिससे पुनः सभी देवता "श्री" सम्पन्न हो गए।
ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥
हिन्दी भावार्थ: श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि करें।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।
कठिन आराधना है पर कहा जाता है जिस प्रकार महामृत्युंजय मंत्र आयुवर्धन व रोग नाश के लिए अचूक वरदान है उसी प्रकार स्वर्णाकर्षण भैरव साधना कुंडली मे महादरिद्र योग व आर्थिक समस्याओं के योग को समाप्त करती है।
इस साधना में चैतन्य किये गए स्वर्णाकर्षण यंत्र को पूजा स्थान मे स्थापित कर दें और नित्य यंत्र का दर्शन करे।