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*लम्बी सुदर्शन क्रिया के बाद जिस श्लोक का मंत्रोच्चारण होता है ; उसका अर्थ :-*
*वंदे गुरु पद पदम परागा*
मैं गुरु के पद कमलों के पराग कणों ( धूल के कणों ) को नमन करता हूँ । ( नतमस्तक होता हूँ।)
*सुरुचि सुवास सरस अनुरागी*
उनमें सुंगध, अनुराग का आकर्षण; रस का अनुभव हैं ।
*अमिय मुरी मय चूरन चारु*
वह संजीवनी बूटी की तरह जीवनदायी शक्ति के समान है ।
*सकल सुमन भव रुज़ परिवारा*
वह जन्म- मरण चक्र नामक रोग का नाश करती है ।
*सुकृति शंभु तनु विमल विभूति*
वह कल्याणकारी शिवजी के शरीर पर घिसी गई शुद्ध भस्म के समान है ।
*मंजुल मंगल मोद प्रसुति*
वह मधुर, कल्याणकारी तथा आनंद को जन्म देने वाली है ।
*जन-मन मंजु मुकुर मल हरिणी*
वह मन रूपी आईने को स्वच्छ करने वाली है ।
*की तिलक गुन गन बस करनी*
इन धूल-रूपी पराग कणों का मस्तक के मध्य पर तिलक लगाने से सभी सद् गुणों की वृद्धि होती है ।
जय गुरु देव ।